
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मालदीव के 60वें स्वतंत्रता दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया और अपने इस पड़ोसी देश को आगे बढ़ते रहने तथा खुशहाल रहने के लिए भारत की ओर से शुभकामनाएं दीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मालदीव दौरे के दौरान जिस गर्मजोशी से मालदीव की जनता और सरकार ने उनका स्वागत किया, उसने अंतरराष्ट्रीय राजनीति को कई संदेश दिए। मालदीव की सड़कों पर लगे ‘मोदी-मोदी’ के नारे और नागरिकों का उत्साह यह दर्शाता है कि भारत और मालदीव के रिश्ते नए विश्वास और मजबूती के दौर में प्रवेश कर चुके हैं।
राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के शुरुआती दिनों में उनके चीन की ओर झुकाव को लेकर आशंकाएं थीं। लेकिन मोदी के स्वागत ने यह संकेत दिया कि मालदीव की जनता भारत को एक भरोसेमंद साझेदार के रूप में देखती है। यह चीन के लिए स्पष्ट संदेश है कि मालदीव में भारत की जमीनी पकड़ और लोकप्रियता मजबूत है। जो लोग मालदीव में इंडिया आउट अभियान चला रहे थे उन्हें राजधानी माले की सड़क का यह दृश्य जरूर देखना चाहिए जहां जनता खुद से नरेंद्र मोदी जिंदाबाद के नारे लगा रही है।
हम आपको बता दें कि चीन हिंद महासागर में अपने बंदरगाहों और निवेशों के माध्यम से प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। मालदीव इस रणनीति में एक अहम मोती है। लेकिन मालदीव में भारत के प्रति बढ़ती सकारात्मकता चीन की इस नीति के लिए बाधा बन सकती है। ‘मोदी-मोदी’ के नारे यह संकेत हैं कि मालदीव भारत को अधिक प्राथमिकता देने के लिए तैयार है। साथ ही मालदीव के राष्ट्रपति मुइज्जू ने स्पष्ट किया है कि उनकी सरकार किसी भी विदेशी शक्ति को देश के मामलों पर नियंत्रण नहीं करने देगी। भारत के साथ बढ़ता सहयोग यह दिखाता है कि मालदीव चीन पर अत्यधिक निर्भरता से बचते हुए संतुलित कूटनीति अपनाना चाहता है। यह संकेत चीन के लिए चिंता का विषय हो सकता है। हम आपको बता दें कि मालदीव के राष्ट्रपति डॉ. मोहम्मद मुइज्जू ने 60वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर चीन को अप्रत्यक्ष रूप से संदेश दिया है कि उनकी सरकार किसी भी विदेशी शक्ति को मालदीव पर नियंत्रण नहीं करने देगी। राष्ट्रपति मुइज्जू ने वरिष्ठ सैन्य और पुलिस अधिकारियों के साथ आयोजित बैठक में कहा कि मालदीव को हमेशा अपने नागरिकों की सुरक्षा और अपने मामलों के प्रबंधन के लिए तैयार रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि विशाल समुद्री क्षेत्र वाले इस देश के लिए सुरक्षा बलों की क्षमता बढ़ाना आवश्यक है ताकि वह अपने मामलों को स्वयं संभाल सके। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि मालदीव द्विपक्षीय साझेदारों से तकनीकी और अन्य सहयोग लेने के लिए खुला है, लेकिन किसी अन्य देश को आकर मालदीव के मामलों पर नियंत्रण करने देना उनकी सरकार की नीति के विरुद्ध है। यही कारण है कि प्रशासन सेना और पुलिस की भूमिका बढ़ाने पर जोर दे रहा है।
मालदीव में मोदी के स्वागत का यह उत्साह बताता है कि भारत न केवल आर्थिक और रक्षा सहयोग से बल्कि जनता-से-जनता के रिश्तों से भी मालदीव में मजबूत स्थिति में है। यह चीन को संदेश देता है कि भारत की इस क्षेत्र में गहरी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक जड़ें हैं, जिन्हें बाहरी प्रभाव से कमजोर करना मुश्किल है। मोदी के मालदीव दौरे और ‘मोदी-मोदी’ नारों ने चीन को यह स्पष्ट संदेश दिया है कि हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की भूमिका अपरिहार्य है। मालदीव भारत के साथ अपने रिश्तों को प्राथमिकता देकर यह दिखा रहा है कि वह चीन के अत्यधिक प्रभाव से दूरी बनाना चाहता है। मालदीव के राष्ट्रपति ने जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी को भारतीय राजनीति में रिकॉर्ड बनाने पर बधाई दी वह दृश्य भी देखने लायक था।
जहां तक भारत और मालदीव के बीच हुए करारों की बात है तो आपको बता दें कि राष्ट्रपति मुइज्जू और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच द्विपक्षीय वार्ता के बाद दोनों देशों ने आठ महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए। इनमें भारत-मालदीव मुक्त व्यापार समझौते (FTA) की शर्तें, भारत की एक्ज़िम बैंक से 565 मिलियन अमेरिकी डॉलर की लाइन ऑफ क्रेडिट, मछली पालन और एक्वाकल्चर के क्षेत्र में सहयोग, डिजिटल परिवर्तन के लिए भारत के सफल डिजिटल समाधानों को साझा करने, भारतीय फार्माकोपिया की मान्यता और मालदीव में यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) सेवाओं के कार्यान्वयन से जुड़े समझौते शामिल हैं।
कुल मिलाकर देखें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा ने भारत-मालदीव संबंधों को एक नई ऊंचाई दी है। इस यात्रा का महत्व केवल द्विपक्षीय सहयोग तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हिंद महासागर क्षेत्र में रणनीतिक समीकरणों को भी प्रभावित करती है। जहां तक मोदी की यात्रा से चीन पर रणनीतिक प्रभाव पड़ने की बात है तो आपको बता दें कि मालदीव, हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की Belt and Road Initiative (BRI) का अहम हिस्सा रहा है। बीते कुछ वर्षों में चीन ने मालदीव में भारी निवेश कर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की थी। प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा यह संदेश देती है कि भारत मालदीव को अपनी रणनीतिक परिधि का हिस्सा मानता है और चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए सक्रिय है। भारत द्वारा घोषित नई परियोजनाएं और सुरक्षा सहयोग मालदीव को यह विकल्प देते हैं कि वह चीन पर अत्यधिक निर्भर न रहे।
हम आपको यह भी बता दें कि मालदीव के राष्ट्रपति के एक करीबी रिश्तेदार की ओर से प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ विवादित टिप्पणी की बात जैसे ही सामने आई वैसे ही भारत ने इसे गंभीरता से लिया और कड़ा कूटनीतिक विरोध दर्ज कराया। यह प्रतिक्रिया इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह संदेश देता है कि भारत अपने नेतृत्व के सम्मान से जुड़े मुद्दों पर समझौता नहीं करेगा। यह मालदीव सरकार को भी सतर्क करता है कि वह आंतरिक राजनीतिक बयानों को नियंत्रित करे, ताकि द्विपक्षीय संबंधों पर नकारात्मक असर न पड़े।
भारत ने यह स्पष्ट किया कि मजबूत रिश्ते पारस्परिक सम्मान पर आधारित होते हैं। मालदीव सरकार ने भी बाद में यह सुनिश्चित करने का आश्वासन दिया कि ऐसे बयान द्विपक्षीय रिश्तों को प्रभावित न करें।
बहरहाल, इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत-मालदीव संबंधों में रक्षा, व्यापार और डिजिटल कनेक्टिविटी के क्षेत्र में बढ़ती साझेदारी दोनों देशों को दीर्घकालिक लाभ देगी। यह सहयोग न केवल आर्थिक विकास में सहायक होगा, बल्कि हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की रणनीतिक स्थिति को भी मजबूत करेगा। देखा जाये तो प्रधानमंत्री मोदी की मालदीव यात्र