October 7, 2025

पीयूष पुरोहित


भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में महात्मा गांधी का नाम अमिट अक्षरों में अंकित है। वे केवल एक राजनीतिक नेता नहीं, बल्कि एक युगपुरुष, एक विचारधारा और मानवता के पुजारी थे। उनके जीवन और सिद्धांतों ने भारत ही नहीं, पूरे विश्व को नई दिशा प्रदान की। सत्य और अहिंसा के माध्यम से संघर्ष करने का उनका मार्ग आज भी हर पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

◼जन्म और शिक्षा

महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ। उनके पिता करमचंद गांधी पोरबंदर रियासत में दीवान थे और माता पुतलीबाई धार्मिक विचारों से ओतप्रोत थीं। बचपन से ही गांधीजी के भीतर सत्य, ईमानदारी और धार्मिकता के संस्कार घर कर गए।

1891 में उन्होंने इंग्लैंड से वकालत की पढ़ाई पूरी की और भारत लौट आए। वकालत के लिए वे दक्षिण अफ्रीका गए, जहां उन्हें रंगभेद और भेदभाव का सामना करना पड़ा। रेलगाड़ी से “प्रथम श्रेणी” का टिकट होने के बावजूद एक श्वेत यात्री के कहने पर उन्हें डिब्बे से धक्का देकर उतार दिया गया। यह घटना उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट साबित हुई।

◼सत्य और अहिंसा का मार्ग

दक्षिण अफ्रीका में ही गांधीजी ने “सत्याग्रह” का शस्त्र गढ़ा। उन्होंने अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध बिना हिंसा का सहारा लिए संघर्ष किया और सफल भी हुए। यहीं से उन्हें अहिंसात्मक आंदोलन की शक्ति का अनुभव हुआ, जिसे बाद में उन्होंने भारत की स्वतंत्रता लड़ाई में अपनाया।

◼भारत में स्वतंत्रता संग्राम

1915 में भारत लौटकर गांधीजी ने देश की राजनीतिक स्थिति का अध्ययन किया और जन-आंदोलनों के माध्यम से आजादी की लड़ाई को नया स्वरूप दिया।

◼चंपारण सत्याग्रह (1917) – गांधीजी का पहला बड़ा आंदोलन, जिसमें उन्होंने नील किसानों की समस्याओं को उजागर कर अंग्रेजी हुकूमत को झुकने पर मजबूर किया।

◼असहयोग आंदोलन (1920) – गांधीजी ने देशवासियों से अंग्रेजी शासन और उसके संस्थानों का बहिष्कार करने का आह्वान किया। इस आंदोलन ने स्वतंत्रता संघर्ष को जन-जन तक पहुँचा दिया।

◼ नमक सत्याग्रह (1930) – दांडी यात्रा के माध्यम से उन्होंने अंग्रेजों के नमक कानून को तोड़ा और साम्राज्य की नींव हिला दी।

◼ भारत छोड़ो आंदोलन (1942) – गांधीजी का ऐतिहासिक आह्वान “अंग्रेजों भारत छोड़ो” स्वतंत्रता की अंतिम निर्णायक लड़ाई बना।

◼ सामाजिक और नैतिक योगदान

गांधीजी ने स्वतंत्रता आंदोलन को केवल राजनीतिक संघर्ष नहीं माना, बल्कि उसे सामाजिक सुधारों से भी जोड़ा। उन्होंने छुआछूत और जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाई और हरिजन सेवक संघ की स्थापना की। उन्होंने खादी और चर्खे को आत्मनिर्भरता का प्रतीक बनाया। वे महिलाओं की समान भागीदारी और शिक्षा के प्रबल समर्थक थे। उनका विश्वास था कि ग्राम स्वराज के बिना भारत का वास्तविक उत्थान संभव नहीं।

◼गांधीजी का दर्शन

गांधीजी का कहना था —“सत्य ही ईश्वर है।”
“आँख के बदले आँख से पूरी दुनिया अंधी हो जाएगी।”
“आप वह बदलाव बनिए, जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं।”
उनके विचार केवल भारत तक सीमित नहीं रहे। अमेरिका के मार्टिन लूथर किंग जूनियर, दक्षिण अफ्रीका के नेल्सन मंडेला जैसे नेताओं ने भी गांधीजी की अहिंसात्मक क्रांति से प्रेरणा ली।

◼ विरासत और प्रेरणा

30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे द्वारा गांधीजी की हत्या कर दी गई। यह घटना पूरे राष्ट्र के लिए गहरी पीड़ा का क्षण थी। किंतु उनके विचार और आदर्श अमर हो गए।
संयुक्त राष्ट्र ने उनके जन्मदिन 2 अक्टूबर को “अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस” घोषित कर उन्हें वैश्विक सम्मान दिया। आज भी जब विश्व हिंसा, युद्ध और आतंकवाद की चुनौतियों से जूझ रहा है, तब गांधीजी के विचार प्रकाशपुंज बनकर राह दिखाते हैं।


◼ मानवता और नैतिकता के प्रतीक

महात्मा गांधी का जीवन केवल स्वतंत्रता की लड़ाई तक सीमित नहीं था, बल्कि वह मानवता और नैतिकता का प्रतीक था। उन्होंने यह सिद्ध कर दिखाया कि बिना हथियारों के भी सबसे शक्तिशाली साम्राज्य को झुकाया जा सकता है।
गांधीजी की शिक्षाएँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी सौ साल पहले थीं। वे युगों-युगों तक सत्य और अहिंसा की अमर ज्योति बनकर मानव समाज का मार्गदर्शन करते रहेंगे।

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