
नई दिल्ली। भारत के लिए आज एक बड़ी आर्थिक उपलब्धि दर्ज हुई है। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा जारी ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक देश का विदेशी मुद्रा भंडार (Forex Reserves) पहली बार 700 अरब डॉलर के स्तर को पार कर गया है। यह उपलब्धि भारत की आर्थिक स्थिरता और वैश्विक निवेशकों के विश्वास को मजबूत करने वाली मानी जा रही है।
क्या है विदेशी मुद्रा भंडार?
विदेशी मुद्रा भंडार किसी भी देश की आर्थिक शक्ति का अहम संकेतक होता है। इसमें विदेशी मुद्राएं, सोना, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) में जमा विशेष आहरण अधिकार (SDR) और रिज़र्व पोजिशन शामिल होते हैं। यह भंडार आयात भुगतान करने, विदेशी कर्ज चुकाने और रुपये की विनिमय दर को स्थिर बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
क्यों है यह उपलब्धि खास?
700 अरब डॉलर से अधिक का भंडार भारत को उन चुनिंदा देशों में शामिल करता है जिनके पास लंबी अवधि तक आयात कवर करने की क्षमता है।
मौजूदा भंडार के बल पर भारत लगभग 11-12 महीनों तक आयात खर्च को कवर कर सकता है, यानी यदि अचानक विदेशी पूंजी प्रवाह कम हो जाए तो भी देश की अर्थव्यवस्था प्रभावित नहीं होगी।
इस स्तर तक पहुँचना भारत की निर्यात वृद्धि, प्रवासी भारतीयों से रिकॉर्ड रेमिटेंस और विदेशी निवेश के कारण संभव हुआ है।
निवेशकों के लिए सकारात्मक संकेत
आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि इतना बड़ा भंडार भारत की वित्तीय स्थिति को सुरक्षित दिखाता है और विदेशी निवेशकों के बीच विश्वास बढ़ाता है। इससे भारत के बॉन्ड मार्केट और रुपए की मजबूती को सहारा मिलेगा।
सरकार और RBI की भूमिका
पिछले कुछ वर्षों में रिज़र्व बैंक ने सक्रिय रूप से डॉलर की खरीद कर भंडार बढ़ाने पर ध्यान दिया। साथ ही सरकार ने उद्योग और सेवाओं के निर्यात को प्रोत्साहन दिया और FDI (विदेशी निवेश) के लिए नीतिगत सुधार किए।
भविष्य की चुनौतियाँ
कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि से भारत का आयात बिल बढ़ सकता है, जिससे भंडार पर दबाव आएगा। वैश्विक आर्थिक मंदी और अमेरिकी डॉलर की मजबूती भी भंडार पर असर डाल सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अपने सेवा क्षेत्र और हाई-टेक उद्योगों को और मजबूत करना होगा ताकि भंडार का स्तर लंबे समय तक स्थिर रह सके।