
भारत और अमेरिका के बीच संबंध हाल के वर्षों में काफी मजबूत हुए हैं, लेकिन हालिया घटनाक्रमों, विशेष रूप से रूस से भारत की तेल खरीद और अमेरिका द्वारा लगाए गए अतिरिक्त टैरिफ जैसे मुद्दों ने कुछ तनाव पैदा किया है। फिर भी, दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी को “21वीं सदी की परिभाषित साझेदारी” के रूप में देखा जाता है, जो लोकतंत्र, नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था, और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्थिरता जैसे साझा मूल्यों पर आधारित है।
रणनीतिक सहयोग: भारत और अमेरिका के बीच रक्षा, प्रौद्योगिकी, और आर्थिक क्षेत्रों में सहयोग बढ़ा है। क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान, और ऑस्ट्रेलिया) और I2U2 (भारत, इजरायल, UAE, और अमेरिका) जैसे मंचों ने दोनों देशों को इंडो-पैसिफिक और पश्चिम एशिया में साझा हितों के लिए करीब लाया है। 2024 में iCET (Initiative on Critical and Emerging Technology) की बैठक और GE-414 जेट इंजन सौदे जैसे कदम इस सहयोग को दर्शाते हैं।
रूस-यूक्रेन और तेल विवाद: भारत का रूस से सस्ते तेल का आयात बढ़ाना और रूस-यूक्रेन युद्ध में तटस्थ रुख अपनाना अमेरिका के लिए “point of irritation” रहा है। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने इसे द्विपक्षीय संबंधों में एक चुनौती बताया। इसके अलावा, अमेरिका ने भारत पर रूसी तेल आयात के लिए 25% अतिरिक्त टैरिफ (कुल 50%) लगाया, जिसने कुछ तनाव पैदा किया है।
खालिस्तान और अन्य तनाव: अमेरिका में खालिस्तानी नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की कथित साजिश ने दोनों देशों के बीच अविश्वास की परत जोड़ी है। इस मुद्दे को यदि परिपक्वता से नहीं संभाला गया, तो संबंधों में और जटिलताएँ आ सकती हैं।
आर्थिक और व्यापारिक संबंध: दोनों देशों के बीच व्यापार 2022-23 में 190.1 बिलियन डॉलर तक पहुँचा, जिसमें अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। FDI में अमेरिका का 18% योगदान है, जो सिंगापुर के बाद दूसरा सबसे बड़ा है। फिर भी, भारत ने IPEF (Indo-Pacific Economic Framework) के व्यापार स्तंभ में शामिल होने में संकोच दिखाया है, जो कुछ नीतिगत मतभेदों को दर्शाता है।
क्या गुंजाइश बाकी है ? हाँ, भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में अभी भी काफी गुंजाइश बाकी है। दोनों देश रणनीतिक रूप से एक-दूसरे के लिए महत्वपूर्ण हैं, खासकर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए। भारत की तटस्थ नीति और रूस के साथ संबंधों ने भले ही कुछ तनाव पैदा किया हो, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि दीर्घकालिक प्रभाव सीमित होंगे। अमेरिका भारत को अपनी विदेश नीति में एक महत्वपूर्ण साझेदार मानता है, जैसा कि हाल के “2+2” संवाद और क्वाड शिखर सम्मेलनों में देखा गया।
चुनौतियाँ और अवसरचुनौतियाँ: रूस-यूक्रेन युद्ध, खालिस्तान मुद्दा, और अमेरिकी टैरिफ जैसे कारक संबंधों को जटिल बना रहे हैं। इसके अलावा, अमेरिका का ध्यान मध्य पूर्व और यूक्रेन की ओर अधिक होने से भारत-प्रशांत क्षेत्र में भारत को अपेक्षाकृत कम प्राथमिकता मिल रही है।
अवसर: रक्षा सहयोग, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (जैसे GE-414 जेट इंजन), और आर्थिक साझेदारी में प्रगति से संबंधों को और मजबूत किया जा सकता है। भारतीय प्रवासियों की सॉफ्ट पावर और अमेरिकी चुनावों में उनकी बढ़ती भूमिका भी संबंधों को सकारात्मक दिशा दे रही है।