August 2, 2025

विधानसभाओं से पारित विधेयकों पर विचार के लिए समय सीमा पर मंथन

नईदिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ 22 जुलाई को राष्ट्रपति के संदर्भ पर विचार करेगी कि क्या राज्य विधानसभाओं से पारित विधेयकों पर विचार करते वक्त राष्ट्रपति की ओर से विवेकाधिकार का प्रयोग करने के लिए न्यायिक आदेशों से समय-सीमाएं निर्धारित की जा सकती हैं।
चीफ जस्टिस (सीजेआई) जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस चंदुरकर की पीठ सुनवाई करेगी।

राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से 14 महत्वपूर्ण प्रश्न पूछे
बता दें कि इसी साल मई में, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अनुच्छेद 143(1) के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग किया और 8 अप्रैल के अपने फैसले पर सुप्रीम कोर्ट से 14 महत्वपूर्ण प्रश्न पूछे, जिसमें राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए राज्य विधानसभाओं से पारित विधेयकों पर कार्रवाई करने की समय-सीमाएं निर्धारित की गई थीं।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में की थीं अहम टिप्पणियां
राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से जो 14 सवाल पूछे हैं इसमें उन्होंने राज्यपाल की शक्तियों, न्यायिक दखल और समयसीमा तय करने जैसे विषयों पर स्पष्टीकरण मांगा है। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले में दिए अपने फैसले में कहा था कि राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल की ओर से भेजे गए विधेयक पर राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर फैसला लेना होगा। अगर तय समयसीमा में फैसला नहीं लिया जाता तो राष्ट्रपति को राज्य को इसकी वाजिब वजह बतानी होगी।

अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति के फैसले की न्यायिक समीक्षा
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी कहा कि राष्ट्रपति किसी विधेयक को पुनर्विचार के लिए राज्य विधानसभा के पास वापस भेज सकते हैं। अगर विधानसभा उस विधेयक को फिर से पारित करती है तो राष्ट्रपति को उस पर अंतिम फैसला लेना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति के फैसले की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है। अदालत ने कहा कि अगर राज्यपाल ने मंत्रिपरिषद की सलाह के खिलाफ जाकर फैसला लिया है तो सुप्रीम कोर्ट के पास उस विधेयक को कानूनी रूप से जांचने का अधिकार होगा।

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