
अल्प कार्यकाल में ही भारत को दिखाई आत्मनिर्भरता और साहस की
दिशा
◼पीयूष पुरोहित
भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय (वर्तमान चंदौली) में हुआ। उनका जीवन संघर्ष, सादगी और राष्ट्रभक्ति का अद्भुत उदाहरण है। संयोग से यही दिन महात्मा गांधी की जयंती का भी है, इसलिए 2 अक्टूबर भारतीय इतिहास में दो महान विभूतियों के स्मरण का अवसर लेकर आता है।
बचपन में पिता का निधन
बचपन में पिता का निधन होने के बाद शास्त्री जी ने आर्थिक कठिनाइयों में जीवन व्यतीत किया, लेकिन उन्होंने पढ़ाई जारी रखी। काशी विद्यापीठ से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्हें “शास्त्री” की उपाधि दी गई, जो उनके नाम का स्थायी हिस्सा बनी।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान में भूमिका
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उन्होंने असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। वे नौ साल से अधिक समय तक जेल में रहे। आज़ादी के बाद उन्हें उत्तर प्रदेश और केंद्र सरकार में जिम्मेदार पद मिले।
प्रधानमंत्री काल में देश को दिया नया दृष्टिकोण
1964 में पंडित नेहरू के निधन के बाद वे प्रधानमंत्री बने। अल्प कार्यकाल में ही उन्होंने देश को नया दृष्टिकोण दिया। 1965 के भारत-पाक युद्ध में उन्होंने देश का मनोबल बढ़ाया और सैनिकों का साहसिक नेतृत्व किया। उनका दिया हुआ नारा “जय जवान, जय किसान” आज भी भारत की आत्मा और पहचान है।
कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए उन्होंने हरित क्रांति और दुग्ध उत्पादन के लिए श्वेत क्रांति को बढ़ावा दिया। वे मानते थे कि सैनिक और किसान देश की रीढ़ हैं।
शास्त्री जी का जीवन अत्यंत सादा था। प्रधानमंत्री रहते हुए भी वे सामान्य नागरिक की तरह जीवन जीते थे। खाद्यान्न संकट के समय उन्होंने स्वयं सप्ताह में एक दिन उपवास रखा और देशवासियों को भी ऐसा करने की अपील की।
1965 के युद्ध के बाद ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर करते समय उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांति का संदेश दिया। लेकिन दुर्भाग्यवश 11 जनवरी 1966 को ताशकंद में ही उनका निधन हो गया। यह देश के लिए एक बड़ी क्षति थी।
आज जब राजनीति और समाज में ईमानदारी और पारदर्शिता की आवश्यकता और अधिक बढ़ गई है, तब शास्त्री जी का जीवन हमें दिशा दिखाता है।
व्यक्तित्व और जीवन शैली
लाल बहादुर शास्त्री की सादगी और ईमानदारी के कई उदाहरण दिए जाते हैं। प्रधानमंत्री बनने के बाद भी वे साधारण घर और सरल जीवनशैली अपनाए रहे। कहा जाता है कि एक बार देश में खाद्यान्न संकट के समय उन्होंने स्वयं और अपने परिवार को सप्ताह में एक दिन उपवास रखने की प्रेरणा दी, ताकि जनता भी अनुशासन का पालन करे। वे दिखावे से दूर रहते थे और राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानते थे।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भूमिका
1965 के युद्ध के बाद शास्त्री जी ने ताशकंद समझौता किया, जिसके जरिए भारत और पाकिस्तान के बीच शांति स्थापित करने का प्रयास हुआ। लेकिन दुर्भाग्यवश 11 जनवरी 1966 को ताशकंद में ही उनका आकस्मिक निधन हो गया। उनकी मृत्यु रहस्यमय परिस्थितियों में हुई, जिससे देश शोकाकुल हो गया।
लाल बहादुर शास्त्री का जीवन साधारण होते हुए भी असाधारण प्रेरणा से भरा था। उनकी सादगी, ईमानदारी और राष्ट्रभक्ति ने उन्हें अमर बना दिया। 2 अक्टूबर की जयंती केवल उनके जन्म की स्मृति नहीं, बल्कि उनके विचारों और आदर्शों को आत्मसात करने का अवसर है।
आज आवश्यकता है कि हम शास्त्री जी के दिखाए मार्ग पर चलकर देश को आत्मनिर्भर, सशक्त और नैतिक मूल्यों से युक्त बनाने का संकल्प लें।
लाल बहादुर शास्त्री :
जन्म : 2 अक्टूबर 1904, मुगलसराय (चंदौली, उत्तर प्रदेश)
शिक्षा : काशी विद्यापीठ से स्नातक, “शास्त्री” उपाधि प्राप्त
स्वतंत्रता आंदोलन : असहयोग, नमक सत्याग्रह, भारत छोड़ो आंदोलन
प्रधानमंत्री कार्यकाल : जून 1964 से जनवरी 1966
नारा : “जय जवान, जय किसान”
प्रमुख योगदान : हरित क्रांति, श्वेत क्रांति
निधन : 11 जनवरी 1966, ताशकंद (उज्बेकिस्तान)