October 7, 2025

◼पीयूष पुरोहित

भारत की सांस्कृतिक, सामाजिक और वैचारिक धारा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का नाम अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। वर्ष 1925 में विजयादशमी के दिन डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा स्थापित यह संगठन आज अपने 100 वर्ष पूर्ण कर रहा है। एक सदी की यह यात्रा केवल संगठनात्मक विस्तार की नहीं, बल्कि विचार, सेवा और राष्ट्रनिर्माण की सतत साधना की यात्रा है।

डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार

स्थापना की पृष्ठभूमि

20वीं सदी के प्रारंभिक दशकों में भारत गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था। समाज जातीय और सांप्रदायिक विभाजनों से कमजोर था। राजनीतिक स्तर पर आंदोलन तो चल रहे थे, किंतु सामाजिक स्तर पर एकता और अनुशासन की कमी स्पष्ट थी। ऐसे समय में डॉ. हेडगेवार ने महसूस किया कि राष्ट्र को केवल राजनीतिक स्वतंत्रता ही नहीं, बल्कि आत्मबल और सांस्कृतिक चेतना की आवश्यकता है।
इसी विचार से 27 सितंबर 1925 (विजयादशमी) को नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नींव रखी गई। संघ का मूल लक्ष्य था—चरित्र निर्माण, अनुशासन और संगठन के बल पर राष्ट्र का पुनरुत्थान।

संगठन की कार्यपद्धति –आरएसएस का आधार शाखाएँ हैं। शाखाओं में प्रार्थना, व्यायाम, खेल, गीत और बौद्धिक चर्चा के माध्यम से स्वयंसेवकों में शारीरिक क्षमता, मानसिक दृढ़ता और सामाजिक समरसता विकसित की जाती है। “संघे शक्ति कलौ युगे” अर्थात संगठन में ही शक्ति है—यह संघ का मूलमंत्र है। राजनीतिक महत्वाकांक्षा से दूर रहकर संघ ने स्वयं को एक सांस्कृतिक और सामाजिक संगठन के रूप में प्रस्तुत किया।

स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका

यद्यपि संघ प्रत्यक्ष रूप से राजनीतिक आंदोलनों का हिस्सा नहीं बना, परंतु उसके कई स्वयंसेवकों ने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी निभाई। डॉ. हेडगेवार स्वयं कांग्रेस के प्रारंभिक आंदोलनों से जुड़े थे। स्वतंत्रता प्राप्ति तक संघ के कार्यकर्ता समाज में संगठन और अनुशासन का संस्कार भरते रहे।

स्वतंत्र भारत में विस्तार

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संघ ने शिक्षा, सेवा, ग्रामीण विकास और सांस्कृतिक जागरण के कार्यों पर ध्यान केंद्रित किया।

विद्या भारती – शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत, हजारों विद्यालयों का संचालन।

सेवा भारती – स्वास्थ्य, आपदा राहत और समाज सेवा में सक्रिय।

वनवासी कल्याण आश्रम – जनजातीय समाज के उत्थान हेतु।

भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ – श्रमिकों और किसानों के संगठन।

इनके अलावा सैकड़ों संस्थाएँ संघ से प्रेरित होकर विभिन्न क्षेत्रों में राष्ट्र निर्माण में कार्यरत हैं।

सामाजिक-सांस्कृतिक योगदान

संघ ने ग्राम स्वावलंबन और स्वदेशी के विचार को बल दिया। आपदा काल में—भूकंप, बाढ़, महामारी—स्वयंसेवकों ने सेवा और राहत कार्यों में अग्रणी भूमिका निभाई। समाज में सामाजिक समरसता और छुआछूत के विरोध में अभियान चलाए। पर्यावरण संरक्षण, गौसंरक्षण और स्वच्छता को भी संघ ने अपने कार्य का अंग बनाया।

आलोचना और चुनौतियाँ

100 वर्षों की इस यात्रा में संघ को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। कई बार उस पर सांप्रदायिकता और संकीर्णता के आरोप लगे। स्वतंत्रता के बाद 1948 में गांधीजी की हत्या के पश्चात संघ पर प्रतिबंध लगाया गया, किंतु न्यायालय ने उसे निर्दोष पाया और प्रतिबंध हट गया। समय-समय पर विभिन्न राजनीतिक दलों और विचारधाराओं से संघ का वैचारिक टकराव होता रहा। इन सबके बावजूद संघ ने अपने कार्य को निरंतर बढ़ाया और जनमानस में अपनी जड़ें मजबूत कीं।
वैश्विक विस्तार

आज आरएसएस केवल भारत तक सीमित नहीं है। विश्व के अनेक देशों में प्रवासी भारतीय स्वयंसेवक शाखाएँ चला रहे हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका और खाड़ी देशों तक संघ की शाखाएँ और उससे प्रेरित संगठन सक्रिय हैं। इसने इसे एक वैश्विक सांस्कृतिक आंदोलन का स्वरूप प्रदान किया है।

शताब्दी वर्ष का महत्व

शताब्दी वर्ष केवल 100 वर्षों का उत्सव नहीं है, बल्कि आत्ममंथन और भविष्य की दिशा तय करने का अवसर भी है। यह संगठनात्मक शक्ति और अनुशासन की मिसाल है। यह विचारधारा के निरंतर प्रवाह और अनुकूलन का प्रतीक है। यह सेवा और राष्ट्रसमर्पण की अदम्य परंपरा का उत्सव है।


इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है संघ की शताब्दी
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शताब्दी भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। इसने यह सिद्ध किया है कि अनुशासन, संगठन और समर्पण के बल पर समाज की चेतना बदली जा सकती है।
संघ की 100 वर्ष की यात्रा ने लाखों स्वयंसेवकों को राष्ट्रसेवा के पथ पर प्रेरित किया और समाज जीवन के हर क्षेत्र में अपनी गहरी छाप छोड़ी।
आज जब संघ शताब्दी मना रहा है, तब यह अवसर है कि हम इसकी यात्रा से प्रेरणा लेकर भविष्य के भारत को और अधिक संगठित, आत्मनिर्भर और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बनाने का संकल्प लें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *