

पटना /नईदिल्ली, नेशनल डेस्क। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के भीतर परिवारिक
खींचतान खुलकर सामने आ रही है। लालू प्रसाद यादव की गैरमौजूदगी में पार्टी की बागडोर संभाल रहे तेजस्वी यादव को जहां विपक्ष के हमलों से जूझना है, वहीं अपने ही घर के भीतर से उठ रही आवाज़ें उनकी मुश्किलें बढ़ा रही हैं।
परिवार में बढ़ते मतभेद
तेज प्रताप यादव लगातार संगठनात्मक फैसलों से असंतुष्ट दिखाई दे रहे हैं। कई बार वह सोशल मीडिया और सार्वजनिक मंचों पर छोटे भाई तेजस्वी के नेतृत्व पर सवाल खड़े कर चुके हैं। तेजस्वी यादव पार्टी के अधिकतर वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं की पहली पसंद बने हुए हैं, लेकिन तेज प्रताप का विद्रोही रुख पार्टी की एकजुटता पर सवाल खड़े कर रहा है।तेज प्रताप के प्रकरण के बाद अब लालू यादव को किडनी देकर लोकप्रिय होने वाली उनकी बेटी रोहिणी आचार्य के बयानों ने भी लालू यादव के परिवार में चल रहे उठा-पटक और घमासान को एक बार फिर से उजागर कर दिया है। राबड़ी देवी परिवार को एकजुट रखने की कोशिश कर रही हैं, मगर खींचतान लगातार गहराती जा रही है।
सियासी समीकरण पर असर
👉 परिवारिक कलह से पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल प्रभावित हो सकता है।
👉 चुनाव से ठीक पहले आरजेडी की छवि विपक्षी गठबंधन में कमजोर हो
सकती है।
👉 भाजपा और जेडीयू इस मतभेद को भुनाकर महागठबंधन को नुकसान पहुंचाने की रणनीति बना सकते हैं।
तेजस्वी की अग्निपरीक्षा : तेजस्वी यादव पर इस समय दोहरी जिम्मेदारी है—
पार्टी को एकजुट रखना।चुनावी मैदान में विपक्ष का मुकाबला करना। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर तेजस्वी इस चुनौती से पार पा लेते हैं तो उनका नेतृत्व और भी मजबूत होगा। लेकिन अगर परिवारिक विवाद खुलकर टूटन में बदल गया, तो यह आरजेडी के लिए सबसे बड़ा झटका साबित हो सकता है।