October 7, 2025

अक्टूबर 2001 का पहला सप्ताह….दिल्ली की फिजाओं में शाम के वक्त गुलाबी सर्दी ने दस्तक देनी शुरू कर दी थी..संसद से कुछ ही दूरी पर स्थित रफी मार्ग की आईएनएस बिल्डिंग के सामने संजय की चाय का ठीया रोजाना की तरह गुलजार था..देशभर के अखबारों और टीवी चैनलों के रिपोर्टरों की शाम की चाय की चुस्कियों के साथ यहीं गुजरती थी..इन चुस्कियों के बीच से ही खबरें भी छनकर आती थीं…इसी बीच बीजेपी कवर करने वाला एक पत्रकार सड़क पारकर आता दिखा..आते ही उसने पहले से उपस्थित लोगों के सामने एक प्रश्न उछाल दिया,

‘कुछ पता चला?’

कुछ रिपोर्टरों और तब के दिग्गज संपादकों ने उस रिपोर्टर को उलाहना दिया..

‘पता तो चलता रहेगा. पहले चाय तो पियो।’

तब तक चाय का कागजी कप आ चुका था..उस पत्रकार ने कप पकड़ा और चालू हो गया,

‘कंन्फर्म नहीं हूं. लेकिन खबर है कि मोदी गुजरात जा रहे हैं.’

एक पत्रकार ने उसका मजाक उड़ाया,

‘मोदी गुजरात के हैं तो गुजरात जाएंगे ही. इसमें नया क्या है?’

‘जाना कोई बात नहीं. वह मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं’

‘ऐसा हो ही नहीं सकता.’

ज्यादातर पत्रकारों की पहली प्रतिक्रिया यही थी..

कुछ ने तो मुंह भी बनाए..

लेकिन उस पत्रकार की खबर सही थी..

मुंह बिचकाने और इसे असंभव मानने वाले पत्रकारों की भी सोच अपनी जगह सही थी..नरेंद्र मोदी उन दिनों भारतीय जनता पार्टी के महासचिव भले ही थे, लेकिन उनके पास ना तो चुनाव लड़ने का अनुभव था, ना ही कभी किसी प्रशासनिक पद को संभालने का…तब तक की राजनीति के लिहाज से किसी राज्य का मुख्यमंत्री बनने के लिए ये प्राथमिक योग्यताएं होती थीं..

नरेंद्र मोदी का चयन कहा जाता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजयेपी ने किया था..तब गुजरात भाजपा तत्कालीन मुख्यमंत्री केशु भाई पटेल और शंकर सिंह बाघेला खेमे के बीच बंटी हुई थी। राज्य बीजेपी में पांच साल पहले गुटबाजी के चलते जो हुआ था, वह राजनीति की दुनिया की शर्मनाक घटनाओं में शुमार है..तेरह दिनी सरकार के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सम्मान समारोह में जो हुआ, वह इतिहास हो चुका है..

गुजरात में बीजेपी की सरकार तो थी, कुछ महीने पहले पड़े अकाल के चलते राहत कार्यों के लेकर हलकान थी। अगर संगठन में एकता होती तो सरकार अपना सारा ध्यान अकाल राहत पर होता, लेकिन गुटबाजी के चलते ऐसा संभव नहीं हो पा रहा था..राज्य बीजेपी का समर्थक पटेल खेमा अपने नेता के साथ खड़ा था तो क्षत्रिय समेत दूसरी जातियां बाघेला के साथ। ऐसे में सरकार का प्रदर्शन हिचकोले तो खा ही रहा था, बीजेपी की संभावनाएं भी कमजोर हो रही थीं..

ऐसे माहौल में बीजेपी के आलाकमान का ध्यान संघ के प्रचारक रहे गुजराती मूल के नरेंद्र मोदी की ओर गया। अटल जी के दफ्तर ने जब उन्हें फोन कर के प्रधानमंत्री कार्यालय पहुंचने के संदेश दिया, तब आज की तरह मोबाइल ज्यादा नहीं होते थे..तब मोदी दिल्ली के निगम बोध घाट पर संसद हमले में घायल कैमरामैन के निधन के बाद उसके अंत्येष्ठि में शामिल थे। एक राष्ट्रीय चैनल के उस कैमरामैन के शोक संतप्त परिवार को धीरज बंधा रहे मोदी के पास फोन आया और उनकी जिंदगी ही बदल गई। 

नरेंद्र मोदी ने 7 अक्टूबर 2001 के दिन गुजरात के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।

अभी वे प्रशासन को समझ ही रहे थे, सूखा ग्रस्त गुजरात के लोगों और किसानों के राहत के लिए प्रयासरत ही थे, कि प्रकृति ने उनकी बड़ी परीक्षा ले ली। 26 जनवरी 2002 के दिन कच्छ में जबरदस्त भूकंप आया। इस भूकंप में जान-मान की व्यापक क्षति हुई। गुजरात जैसे हिल गया। लेकिन नरेंद्र मोदी ने इसे चुनौती की तरह लिया। गुजरात के नवनिर्माण का उन्होंने संकल्प लिया। भीगी आंखों वाले कच्छ के आंसुओं को पोछा, और देखते ही देखते अपने कुशल नेतृत्व और सूझबूझ के साथ गुजरात को देश के प्रतिष्ठित राज्यों में स्थापित कर दिया। 

भारत को आजादी देते वक्त ब्रिटिश सरकार के कई कारिंदों को उम्मीद थी कि भारत जल्द ही बिखर जाएगा। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल तो मानते थे कि भारत की आजादी देर तक नहीं टिकेगी। लेकिन भारत ने अपना संविधान तैयार किया। संविधान ने पहले ही चुनाव से वयस्क और बराबरी का मतदान अधिकार दिया। स्त्री-पुरूष. ऊंच-नीच, जाति, धर्म का कोई भेद नहीं रखा। इसी संविधान की बुनियाद पर देश आगे बढ़ता रहा। इसी संविधान की ही सफलता है कि गुजरात के वडनगर के एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार में जन्मा बच्चा आज भारतीय लोकतंत्र के शीर्ष पर है। प्रधानमंत्री मोदी की जीवन यात्रा जहां उनके उत्कट देशप्रेम और राष्ट्रनिष्ठा का उदाहरण है।

उन्होंने जिंदगी कठोर परिश्रम एवं अध्यवसाय का भी प्रतीक है। जिस उम्र में आम नौजवान जिंदगी संवारने की कोशिश करता है, देश और समाज के लिए नरेंद्र मोदी ने उस उम्र में घर छोड़ दिया…इसकी प्रेरणा उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से मिली, जिससे उनका स्कूली दिनों से ही संपर्क रहा। 17 सितंबर 1957 को गुजरात के वडनगर में जन्मे मोदी का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से 8 साल की उम्र में जुड़ गए और स्थानीय शाखा में जाने लगे। मोदी 1960 के दशक के अंत में संघ से स्थायी रूप से जुड़े और घर-परिवार छोड़कर अहमदाबाद के मणिनगर इलाके में स्थित संघ के कार्यालय हेडगेवार भवन में रहने चले गए।  इस दौरान उन्हें गुजरात के प्रांत प्रचारक लक्ष्मणराव इनामदार का स्नेह मिला।

फिर वे उनके सहयोगी के तौर पर काम करने लगे। इनामदार के पास ना सिर्फ गुजरात, बल्कि महाराष्ट्र में लगने वाली संघ की शाखाओं की जिम्मेदारी थी। मोदी के कामकाज से ईमानदार इतना प्रभावित हुए कि उन्हें वे अपना मानस पुत्र मानने लगे। प्रधानमंत्री मोदी इमानदार को अपना गुरू मानते है। इन्हीं ईमानदार की संगति में मोदी 1972 में संघ के प्रचारक बने।  तब से लेकर 1985 तक उन्होंने प्रचारक के तौर पर गुजरात में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बुनियाद मजबूत करने की भूमिका निभाई। 

इसके अगले साल, राज्य में गुजरात नवनिर्माण आंदोलन चल रहा था। छात्रों द्वारा शुरू में शामिल हो गए। यह आंदोलन गुजरात में छात्रों द्वारा शुरू किया गया था। सुरेंद्रनगर से शुरू इस आंदोलन का मकसद गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल की सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ था।  

प्रचारक रहते मोदी को संघ ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में काम करने के लिए भेजा गया। देखते ही देखते यह आंदोलन बिहार तक पहुंच गया। बिहार के छात्रों और नौजवानों ने जयप्रकाश नारायण की अगुआई में आंदोलन छेड़ दिया। देखते ही देखते यह आंदोलन व्यापक रूप से फैल गया। जयप्रकाश नारायण की अगुआई में चल रहे इस आंदोलन को भारतीय इतिहास में बिहार छात्र आंदोलन के नाम से जाना जाता है। इस आंदोलन के ही दौरान इंदिरा गांधी की रायबरेली से निर्वाचन को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया। इसी छाया में 25 जून1975 की आधी रात को इंदिरा सरकार ने देश पर आपातकाल थोप दिया।

आपातकाल के दौरान देशव्यापी गिरफ्तारियां शुरू हो गईं। उस दौरान संघ के तमाम कार्यकर्ताओं के साथ ही अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी जैसे दिग्गज नेताओं को भी गिरफ्तार कर लिया गया। ऐसे में संघ ने अपने कई कार्यकर्ताओं को भूमिगत रहने का संदेश दिया। मोदी को भी भूमिगत रहने को कहा गया और मोदी भी भूमिगत हो गए। भूमिगत रहते हुए मोदी ने सरकार विरोधी साहित्य जगह-जगह बांटे, गिरफ्तार संघ कार्यकर्ताओं के घर-परिवार की देखभाल की।  इसके लिए उन्होंने विदेश में बसे गुजरात समाज के लोगों से संपर्क किया और उनसे मदद मांगी।

इससे प्राप्त धन का उन्होंने आपातकाल के बाद, उन्हें इस काले दौर के पीड़ितों से गवाही इकट्ठा करने का काम सौंपा गया। इसका उद्देश्य एक किताब लिखना था। इस दौरान, वे कई जनसंघ के नेताओं से मिले और पूरे भारत की यात्रा की। जनसंघ के नेता आपातकाल के पहले शिकार थे। 

साल 1978 में नरेंद्र मोदी को संघ ने विभाग प्रचारक बनाया, फिर उन्हें सूरत और बड़ौदा विभाग का संघ प्रभारी बनाया गया। 1981 में, उन्हें प्रांत प्रचारक का दायित्व मिला। प्रांत प्रचारक रहते हुए उन्होंने गुजरात में संघ को प्रतिष्ठित करने में बड़ी भूमिक निभाई। इस दौरान उन्होंने संघ परिवार के कई प्रकल्पों, जैसे भारतीय किसान संघ,  अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और विश्व हिंदू परिषद से समन्वय बनाया। इस बीच गुजरात में साल 1985 में हिंदू-मुस्लिम दंगे हुए। इन दंगों के पीड़ितों के लिए उन्होंने बहुत काम किया। 

इस दौरान नरेंद्र मोदी बड़े संगठनकर्ता के रूप में उभरे। 1985 आते-आते मोदी की संगठन क्षमता को पहचान मिली। इसकी गूंज दिल्ली तक पहुंची। साल 1986 में, जब लालकृष्ण आडवाणी भारतीय जनता पार्टी के  अध्यक्ष बने, तो उन्होंने पार्टी कार्य के लिए मोदी को बीजेपी में भेजने की मांग की। जिसे संघ ने स्वीकार कर लिया और 1987 में, मोदी को संघ ने भारतीय जनता पार्टी में काम करने के लिए भेज दिया। इसके बाद उन्हें भारतीय जनता पार्टी की गुजरात इकाई के संगठन मंत्री की अहम जिम्मेदारी मिली। इसी दौरान राम मंदिर आंदोलन में भारतीय जनता पार्टी ने शिरकत की। पार्टी अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने 1990 में सोमनाथ से अयोध्या की यात्रा शुरू की। भारतीय इतिहास में इसे भारतीय जनता पार्टी की रथयात्रा के रूप में जाना जाता है। आडवाणी की इस रथ यात्रा के मोदी गुजरात में प्रभारी बनाये गए।

इसके एक साल बाद 1991 में, भारतीय जनता पार्टी के अगले अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी ने कन्याकुमारी से श्रीनगर तक के लिए एकता यात्रा निकाली। जिसके राष्ट्रीय आयोजक उन्होंने नरेंद्र मोदी को ही बनाया। जोशी की इस यात्रा का उद्देश्य भारत की एकता को ना सिर्फ प्रदर्शित करना था, बल्कि आतंकवाद ग्रस्त श्रीनगर के लाल चौक में तिरंगा फहराकर भारतीय अखंडता को स्थापित करना था। बहरहाल गुजरात में भारतीय जनता पार्टी के संगठन मंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी ने भाजपा को गुजरात के घर-घर तक पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभाई। जिसकी परिणति 1995 के विधानसभा चुनावों में दिखी, जब राज्य में पार्टी को अपने दम पर बड़ा बहुमत मिला। गुजरात की कामयाबी के कुछ दिनों बाद मोदी को राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया। केंद्रीय स्तर पर उनके कामकाज ने भाजपा केंद्रीय नेतृत्व को इतना प्रभावित किया कि 2001 में उन्हें गुजरात के शासन की बागडोर सौंप दी गई… अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने गुजरात को मॉडल राज्य बनाने में अहम् भूमिका निभाई। 2001 में जहां मोदी ने गंभीर सूखे की चुनौती का सामना किया, वहीं 2002 के भूकंप में तबाह हुए गुजरात को खड़ा करने के लिए कठोर परिश्रम किया।

जिसकी बदौलत गुजरात ऐसा मॉडल राज्य बना, जिसकी गूंज देश ही नहीं, दुनियाभर में सुनाई देने लगी। कच्छ का रण महोत्सव, गुजरात में निवेश बढ़ाने के लिए किए गए कार्य, गुजरात में लड़कियों की शिक्षा के लिए उठाए गए कदमों ने गुजरात की तसवीर बदल कर रख दी। गुजरात की नहरों पर सौर ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाना हो या सरदार सरोवर बांध का पानी गुजरात के आखिरी छोर तक पहुंचाना, मोदी ने जमकर मेहनत की। इसके चलते भारतीय राजनीति और आर्थिकी में दो शब्दों का एक नया युग्म उभरा, गुजरात मॉडल। हालांकि मार्च 2002 में गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस पर हुए हमले और उसमें मारे गए हिंदू तीर्थयात्रियों के प्रतिशोध में राज्यव्यापी दंगे फैल गए। मोदी को इस दौरान मुस्लिम विरोधी के रूप में बदनाम करने की कोशिश हुई। कांग्रेस की अगुआई वाली केंद्र सरकार ने उन्हें कठघरे में लाने की भरपूर कोशिश की। दंगों को लेकर उनसे घंटों सीबीआई ने जिरह की। लेकिन मोदी सब संकटों से बेदाग होकर उभरे। 

इसके चलते उनकी राष्ट्रव्यापी छवि बनी। भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं के चहेते के रूप में मोदी इस कदर उभरे कि भारतीय जनता पार्टी को साल 2013 में पहले उन्हें साल 2014 के लोकसभा चुनावों के लिए चुनाव अभियान समिति का संयोजक बनाया और जुलाई 2013 आते-आते उन्हें बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित कर दिया गया। इसका असर हुआ। भारतीय जनता पार्टी 2014 के चुनावों में अपने दम पर 273 सीटों के साथ बहुमत हासिल करके केंद्र सरकार बनाने में कामयाब हुई। प्रधानमंत्री के तौर पर अपनी पहली पारी में उन्होंने महिलाओं के सम्मान के लिए तमाम कदम उठाए। साल 2015 में सौ करोड़ के शुरूआती फंड से जहां बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान शुरू किया.

वहीं साल 2016 में आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं के हित में उज्ज्वला योजना लागू की…इसके तहत अब तक बीपीएल श्रेणी की करीब दस करोड़ से ज्यादा महिलाओं को गैस कनेक्शन दिए जा चुके हैं। साल 2015 में जनधन खाते खोले गए, तो किसान सम्मान निधि की घोषणा की गई। जिसके तहत करीब दस करोड़ किसानों को सालाना छह हजार रूपए बतौर सहायता दिए जा रहे हैं। मोदी ने प्रधानमंत्री रहते मेक इन इंडिया कार्यक्रम शुरू किया। जिसकी कहानी देश को आत्मनिर्भर बनाने की ओर बढ़ चली है। इससे विदेशी निवेश और निर्यात में बढ़ोत्तरी हुई है.. साल 2004 से 2014 के बीच जहां प्रत्यक्ष विदेशी निवेश करीब 98 बिलियन डॉलर था, वह 2014 से 2024 के बीच बढ़कर 165 बिलियन डॉलर से ज्यादा हो गया है. .इसी तरह 2013-14 में जहां करीब 315 बिलियन डॉलर का निर्यात होता था, 2023-24 में बढ़कर वह करीब 438 बिलियन डॉलर हो गया है..मोबाइल फोन.. खिलौने… वैक्सीन और रेल कोच का निर्यात भी बढ़ा है..मेक इंडिया के तहत चल रहे सेमीकंडक्टर मिशन ने भारत में पहला चिप बना लिया है..इससे भी चिप के निर्यात की भी गुंजाइश बढ़ी है..देश आज दुनिया की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। जिन अंग्रेजों ने हमें कंगाल बनाकर छोड़ा था, उन्हें पीछे छोड़ते हुए देश ने यह आर्थिक हैसियत हासिल की है। यह मोदी के नेतृत्व का ही परिणाम कहा जा सकता है।

मोदी गांधी के बाद शायद पहली भारतीय शख्सियत हैं, जिन्होंने स्वच्छता पर जोर दिया। किसी ने शायद ही सोचा होगा कि कोई प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से शौचालय क्रांति की बात करेगा। लेकिन मोदी ने ऐसा किया। मोदी ने योग को भारत ही नहीं, दुनिया में घर-घर तक पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभाई है। मोदी गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी के बाद पहली ऐसी राजनीतिक शख्सियत हैं…जिन्हें जनसंचारक कहा जा सकता है..आम लोगों से वे सीधा संपर्क स्थापित कर लेते हैं। उनकी सोच युवाओं जैसी है…तकनीक और सोशल मीडिया का इस्तेमाल, उनके सहज संपर्क कौशल का बेहतर औजार है…कौशल विकास, जैसे कार्यक्रमों के जरिए आने वाले दिनों में नौजवानों को अवसर मुहैया कराने की कोशिश में मोदी अहर्निश जुटे हुए हैं.. लोगों के मन तक पहुंचने की उनकी कला ही है कि जब वे खादी के लिए अपील करते हैं तो खादी की बिक्री आसमान छूने लगती है..जब खिलौने की बात करते हैं…तो भारतीय खिलौना उद्योग की बांछें खिल जाती हैं।

यह मोदी के व्यक्तित्व का ही कमाल है कि आज विदेश नीति के मोर्चे पर कामयाबी मिल रही है…अमेरिकी टैरिफ युद्ध के बावजूद भारत मजबूती से खड़ा है। ऑपरेशन सिंदूर हो या पुलवामा हमले के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक, मोदी के व्यक्तित्व का ही कमाल है।  प्रधानमंत्री मोदी की अगुआई में देश ने 18,000 गांवों में बिजली पहुंचाने का महत्वाकांक्षी मिशन तय किया…ये गांव आजादी के 7 दशक बाद भी अंधेरे में डूबे रहे…गांवों का विद्युतीकरण तेजी से हो रहा है।

जिससे ना सिर्फ अंधेरे कोनों में रोशनी पहुंच रही है..बल्कि वहां प्रोडक्शन और विकास के नए अवसर भी बढ़ हे हैं.. आज भारत डिजिटल पेमेंट का नया रिकॉर्ड बना रहा है…आज जीएसटी संग्रह में भारत नया रिकॉर्ड बना रहा है…यह सब संभव हुआ है.. भारतीय नागरिकों के सामर्थ्य के भरोसे…भारत की आर्थिक महाशक्ति बनने की यह कहानी भारत के लोगों के सामर्थ्य की कहानी है..इस सामर्थ्य को प्रधानमंत्री मोदी के कुशल नेतृत्व ने समझा है..उसे जगाया है..जिसकी वजह से देश ने आर्थिक मोर्चे पर नया इतिहास रच दिया है… 

मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व और पक्के इरादों ने ना सिर्फ शासन….बल्कि राजनीति के दकियानूसी तौर तरीकों को बदलकर रख दिया है…अगर दैश चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है…तो उसकी बड़ी वजह है….प्रधानमंत्री की अगुआई में राष्ट्रनीति के रूप में बदली राजनीति और सुशासन में बदला शासन सुशासन….इससे देश पॉलिसी पैरालिसिस की बीमारी से मुक्त हो चुका है..इसकी वजह से विदेशी निवेशक भारत की ओर आकर्षित हुए हैं…वहीं स्टार्टअप्स की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है..लेकिन प्रधानमंत्री यहीं रूकने वाले नहीं है…उनका मकसद है…देश को 2047 तक विकसित बनाना..और वैश्विक क्षितिज पर पहले नंबर पर स्थापित कराना…मोदी का व्यक्तित्व इतना विराट है कि क्या लिखा जाए या क्या छोड़ा जाय, मुश्किल है। मोदी ने देश को नई दिशा दी है, भ्रष्टाचार से जूझती भारती राजनीति को नया रूप दिया है। 

कभी भाजपा और संघ के कार्यक्रमों में दरी बिछाने, कुर्सियां लगाने वाला व्यक्तित्व आज भारतीय राजनीति का पर्याय बन चुका है। यह विराट व्यक्तित्व अपनी जिंदगी के 75 बसंत देखने की ओर बढ़ रहा है। 

इतिहास में ऐसे व्यक्तित्व यदा-कदा ही पैदा होते हैं, जिनके जरिए वक्त करवट लेता है और राष्ट्र अपनी नई कहानी लिखता है। मोदी ऐसी ही शख्सियत हैं।

-उमेश चतुर्वेदी,लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *