October 7, 2025

पटना,स्टेट ब्यूरो। प्रशांत किशोर (PK) ने बिहार के करगहर विधानसभा सीट से 2025 के विधानसभा चुनाव लड़ने की संभावना जताई है। यह सीट ब्राह्मण, राजपूत, कोइरी और कुर्मी जातियों के प्रभाव वाली मानी जाती है, और इस घोषणा ने बिहार की सियासत में हलचल मचा दी है।

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में करगहर सीट पर कांग्रेस के संतोष मिश्रा ने जीत हासिल की थी। वहीं जेडीयू के वशिष्ठ सिंह दूसरे नंबर पर रहे थे। इस बार इस सीट से नीतीश के खासमखास आईएएस अधिकारी रहे दिनेश राय की भी चुनाव लड़ने की चर्चा है।

जेडीयू का भी इस सीट पर दबदबा रहा है। ऐसे में अगर प्रशांत किशोर चुनाव लड़ते हैं तो निश्चितरूप से ब्राह्मण-राजपूत वोटरों के साथ-साथ कोइरी-कुर्मी के यूथ वोटों में बंटवारा होगा। ऐसा माना जा रहा है कि इस सीट से चुनाव लड़कर प्रशांत किशोर पूरे बिहार को मैसेज देना छह रहे है । बता दें कि इस सीट पर जीत हार अंतर दलित वोटरों की भूमिका अहम होती है. पिछली बार मयावती पार्टी बीएसपी की वजह से जेडीयू यह सीट हार गई थी।

बुधवार को पीके ने एक निजी चैनल के कार्यक्रम में यह कहकर अपनी मंशा साफ कर दी कि हर व्यक्ति को दो जगहों से चुनाव लड़ना चाहिए, एक अपनी जन्मभूमि और दूसरी अपनी कर्मभूमि. उन्होंने बताया कि चूंकि करगहर उनकी जन्मभूमि है, इसलिए वह यहां से चुनाव लड़ना चाहेंगे। हालांकि, उनके इस बयान के बाद उनके मीडिया प्रभारी ने स्पष्ट किया है कि यह केवल एक संभावना है और पार्टी जहां से कहेगी, वह वहीं से चुनाव लड़ेंगे। लेकिन इस एक बयान ने ही बिहार की राजनीति में एक भूचाल ला दिया है।

करगहर सीट का जातीय समीकरण-
करगहर विधानसभा सीट रोहतास जिले में स्थित है और इसे ब्राह्मण-राजपूत बहुल सीट माना जाता है। इसके अलावा, कुर्मी और कोइरी समुदायों का भी इस सीट पर महत्वपूर्ण प्रभाव है। अनुसूचित जाति (SC) के मतदाता भी यहां निर्णायक भूमिका निभाते हैं। बिहार में जातीय समीकरण चुनावी नतीजों में अहम भूमिका निभाते हैं, और करगहर कोई अपवाद नहीं है।
ब्राह्मण और राजपूत:

ये दोनों समुदाय परंपरागत रूप से बीजेपी और जेडीयू जैसे दलों के साथ जुड़े रहे हैं। राजपूत वोटर, जो बिहार में लगभग 3.45% हैं, कई सीटों पर हार-जीत तय करते हैं।
कुर्मी और कोइरी :

ये जातियां नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) का कोर वोट बैंक मानी जाती हैं। कुर्मी (लगभग 4%) और कोइरी (लगभग 6%) मिलकर बिहार में करीब 10% वोट बनाते हैं। करगहर में इनका प्रभाव भी नतीजों को प्रभावित करता है।
अनुसूचित जाति: यह समुदाय भी इस सीट पर महत्वपूर्ण है और अक्सर बसपा या अन्य दलों के साथ जाता रहा है।

पीके ने करगहर को क्यों चुना?

प्रशांत किशोर ने करगहर सीट को चुनने के पीछे कई रणनीतिक कारण हो सकते हैं:जातीय समीकरण का लाभ: पीके ने अपनी पार्टी जन सुराज के लिए BRDK (ब्राह्मण-राजपूत-दलित-कुर्मी) फॉर्मूला अपनाया है। करगहर में ये सभी समुदाय प्रभावशाली हैं, जिससे पीके को इनके बीच संतुलन बनाने का मौका मिल सकता है। उनकी पार्टी में पूर्व सांसद उदय सिंह (राजपूत) और पूर्व IAS अधिकारी आरसीपी सिंह (कुर्मी) जैसे नेताओं को शामिल करना इस रणनीति का हिस्सा है।
नीतीश कुमार को चुनौती:

करगहर में जेडीयू का मजबूत आधार रहा है। नीतीश कुमार का कोर वोट बैंक कुर्मी और कोइरी है, और पीके इस वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर सकते हैं। खासकर आरसीपी सिंह, जो कभी नीतीश के करीबी थे, उनकी खामियों और ताकत को अच्छी तरह समझते हैं।
विपक्षी दलों में बंटवारा: पीके का चुनाव लड़ना बीजेपी, जेडीयू और राजद जैसे दलों के वोटों में बंटवारा कर सकता है। खासकर राजपूत और ब्राह्मण वोटर, जो बीजेपी के साथ रहे हैं, और कुर्मी-कोइरी वोटर, जो जेडीयू के साथ हैं, पीके की ओर आ सकते हैं।
क्षेत्रीय प्रभाव:

करगहर पीके की कर्मभूमि के करीब है, और उनकी स्थानीय समझ उन्हें फायदा पहुंचा सकती है।

किसकी नींद उड़ेगी?पीके के इस कदम से कई नेताओं और दलों की नींद उड़ सकती है:नीतीश कुमार (जेडीयू): नीतीश का कोर वोट बैंक कुर्मी और कोइरी है। पीके, खासकर आरसीपी सिंह के जरिए, इस वोट बैंक में सेंध लगा सकते हैं। अगर कुर्मी वोट बंटता है, तो जेडीयू को बड़ा नुकसान हो सकता है।

तेजस्वी यादव (राजद):

राजद का वोट बैंक यादव और मुस्लिम समुदायों पर आधारित है, लेकिन करगहर में ब्राह्मण और राजपूत वोटरों का एक हिस्सा राजद को भी समर्थन देता रहा है। पीके का BRDK फॉर्मूला इस वोट में बंटवारा कर सकता है।
बीजेपी: बीजेपी का राजपूत और ब्राह्मण वोट बैंक करगहर में मजबूत है। उदय सिंह जैसे राजपूत नेता के जन सुराज में शामिल होने से बीजेपी के वोटों में कमी आ सकती है।

बसपा: अनुसूचित जाति के वोटरों पर बसपा का प्रभाव रहा है। पीके का दलित वोटरों को साधने का प्रयास बसपा को भी नुकसान पहुंचा सकता है।

2020 के चुनाव और वर्तमान चर्चा2020 के विधानसभा चुनाव में करगहर सीट पर कांग्रेस के संतोष मिश्रा ने जीत हासिल की थी, जबकि जेडीयू के वशिष्ठ सिंह दूसरे स्थान पर रहे। इस बार जेडीयू के पूर्व IAS अधिकारी दिनेश राय के भी इस सीट से चुनाव लड़ने की चर्चा है। अगर पीके इस सीट से उतरते हैं, तो यह एक त्रिकोणीय या चतुष्कोणीय मुकाबला हो सकता है, जिसमें वोटों का बंटवारा तय है।

क्या है पीके की रणनीति?

पीके जातीय समीकरणों का इस्तेमाल कर नीतीश कुमार और बीजेपी जैसे बड़े दलों को चुनौती देना चाहते हैं। उनकी पार्टी में शामिल नेताओं, जैसे उदय सिंह और आरसीपी सिंह, का प्रभाव इन समुदायों पर है।साथ ही, पीके की छवि एक ऐसे रणनीतिकार की है जो युवाओं और बदलाव चाहने वाले मतदाताओं को आकर्षित कर सकता है। उनकी रैलियों और जन सुराज के अभियानों में युवा वोटरों को लुभाने की कोशिश साफ दिखती है।संभावित प्रभाववोटों का बंटवारा: पीके का चुनाव लड़ना जेडीयू, बीजेपी और राजद के वोट बैंक में सेंध लगा सकता है। खासकर कुर्मी और कोइरी वोटरों का बंटवारा नीतीश के लिए बड़ा झटका हो सकता है।
युवा और स्वतंत्र मतदाता: पीके की छवि एक गैर-परंपरागत नेता की है, जो जातिवाद से ऊपर उठकर बदलाव की बात करते हैं युवा और स्वतंत्र मतदाता: पीके की छवि एक गैर-परंपरागत नेता की है, जो जातिवाद से ऊपर उठकर बदलाव की बात करते हैं। इससे युवा और स्वतंत्र मतदाता उनकी ओर आकर्षित हो सकते हैं।

क्षेत्रीय दलों पर असर: बसपा और छोटे दलों को भी नुकसान हो सकता है, क्योंकि पीके का BRDK फॉर्मूला उनके वोट बैंक को प्रभावित कर सकता है।

पीके का करगहर से चुनाव लड़ने का फैसला बिहार की सियासत में एक बड़ा ट्विस्ट ला सकता है। उनकी BRDK रणनीति और स्थानीय जातीय समीकरणों का फायदा उठाने की कोशिश नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव और बीजेपी के लिए चुनौती बन सकती है। हालांकि, यह अभी केवल एक संभावना है, जैसा कि उनके मीडिया प्रभारी ने स्पष्ट किया है। अगर पीके इस सीट से उतरते हैं, तो करगहर में एक रोमांचक और कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है, जिसमें वोटों का बंटवारा और रणनीति की जीत होगी।

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